उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव के नतीजे आ चुके हैं...भाजपा हर बार
की तरह एक बार फिर भाजपा बाज़ी ले गई है। इस बार का निकाय चुनाव ने मीडिया में भी
बड़े पैमाने पर सुर्खियां बटोरी।टिकट वितरण से लेकर ऑपनियन पोल तक सब कुछ मैन
स्ट्रीम मीडिया की रौनक बना। लेकिन बहुत कुछ था जो कि मीडिया की नजर से दूर रहा या
मीडिया ने उसे तवज्जो ही नही दी।इसमें से अहम है वोटर लिस्ट की गड़ब़ड़ी। इस चुनाव
में युपी का शायद ही कोई निकाय क्षेत्र होगा जहां कि बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट का
अपमार्जन ना हुआ हो और लोगो ने वोटर लिस्ट से
नाम कटने की शिकायत ना की हो। इस चुनाव का सबसे अहम पहेलू वोटर लिस्ट का
गड़बड़झाला है, जिस पर सरकार,चुनाव आयोग और मीडिया ने संज्ञान नही लिया। वोटर
लिस्ट का गड़बड़झाला इस बार बहुत बड़ा था। लगभग 30 फीसदी वोटर वोट डालने से महरुम
रहा तो 30 फीसदी वोट फर्जी थे।जिन्होने चुनाव की परिणाम के निश्चित तौर पर
प्रभावित किया। हांलाकि इसके लिए महज सरकार ही नही स्थानीय केंडिडेट भी जिम्मेदार
हैं जिन्होने अपनी राजनीति के विरोधियों के वोट कटवाने और समर्थको के फर्जी वोट
बनवाने का काम बज़रिए रिश्वत या सिफारिश के अंजाम दिया। लोगो को अपना नाम वोटर
लिस्ट में नही मिला तो वही कुछ लोगो के वोट काट कर उनके पते पर नए वोटर पंजीकृत कर
दिए गए (जो कि फर्जी थे), तो कहीं एक ही पते पर 100-150 वोटें बनी हुई हैं तो कही
पूरी लिस्ट ही हुसरी लिस्ट की कॉपी नजर आती है जहां नाम पते और उम्र मे गलती करके
छिपाने की कोशिश की गई। यकीनन यह स्थानीय प्रत्याशियों ने ही किया होगा पर क्या
इसके लिए बीएलओ और चुनाव आयोग का स्थानीय अधिकारी जिम्मेदार नही है? क्या यह काम बिना रिश्वत
के ङुआ होगा? राज्य निर्वाचन आयोग भले ही वोटर लिस्ट को 70
प्रतिशत से घटा कर 68 प्रतिशत पर लाने का श्रेय ले रहें हों पर राज्य निर्वाचन
आयोग अपनी जिम्मेदारी से नही बच सकता। क्या बड़े पैमाने पर असली वोटो का कट जाने
और फर्जी वोटो का बाकी रह जाने के लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार नही है? पोलिंग पार्टियां चुनाव से एक दिन पहले शाम को
मतदान स्थलो पर पहुंच जाती हैं और ज्यादातर जगहों पर उनके खाने का इंतेजाम
उम्मीदवार ही करते हैं। एसे मे वह उस प्रत्याशी के
समर्थन मे काम ना करते होंगे एसा सोचने की कोई वजह नही। चुनाव आयोग ने इस तरह की
सेटिंगबाज़ी को रोकने के लिए क्या किया? शायद कुछ भी नही। ऐसी
गड़बड़ियों की लिस्ट लम्बी है। कुल मिला कर बात यही है कि यह चुनाव स्वतंत्र और
शांतिपूर्ण तो थे लेकिन निष्पक्ष तो बिलकुल नही थे। चुनाव
आयोग को इस सारे मामले की जांच के लिए एक समिति बनानी चाहिए और इस इन गड़बड़ियों
के जिम्मेदार उम्मीदवारो और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कारवाही करते हुए भ्रष्टाचार
का मामला दर्ज कराना चाहिए। लेकिन सबसे अहम सवाल यही है कि इतनी फज़ीहत के बाद अब
जबकि चुनाव खत्म हो गए हैं चुनाव आयोग इन गड़बड़ियों के खिलाफ कोई कदम उठाएगा! य़ा फिर इस मामले को “चलता है” की पराकाष्ठा को पहुंचते हुए ठंडे बस्ते में डाल देगा।
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