पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने
आ चुके हैं. कांग्रेस
ने हिन्दी भाषी क्षेत्र की विधानसभा सीरीज़ में भाजपा का क्लीन स्वीप कर दिया है. यह
नतीजे लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं इसलिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी इन चुनाव
को लोकसभा का सेमीफाईनल करार दिया था. अब इस सेमीफाइनल में भाजपा हार गई है उसे
हिन्दी भाषी क्षेत्र की 410 विधानसभा सीटों में से महज 197
सीटो पर ही सफलता मिल पाई. यह तीनो राज्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इनमें
से दो राज्यों में भाजपा पिछले 15 सालों से सत्ता में थी जबकि राजस्थान में भाजपा ने 2013 में 163 सीटें जीती थी. अगर लोकसभा सीटों
को देखा जाए तो 2014 में भाजपा ने इन राज्यों की 65 सीटों
में से 63 भाजपा
ने जीती थी जबकि अगर इस विधानसभा के नतीजो को आधार बनाया जाए तो भाजपा इनमें से 31 सीटें
गंवा देगी. छत्तीसगढ़
के नतीजो के विश्लेषण से पता चलता है कि अगर इसी तरह लोकसभा में भी वोटिंग हुई तो
कांग्रेस 11 में
से दस सीटें जीत जाएगी. हिन्दी भाषी राज्यों में भाजपा का वोट शेयर कम
होना भाजपा के लिए खतरे की घंटी है. इन नतीजो का असर उत्तर प्रदेश, बिहार,झारखंड़
हरियाणा,और
उत्तराखंड़ में भी पड़ेगा जिसका खामियाजा भाजपा को लोकसभा के साथ साथ अगले साल
होने वाले झारखंड और हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ेगा. अगर
उत्तर भारत की वर्तमान राजनैतिक परिस्थितियों का जायज़ा लिया जाए तो हम देखेंगे कि
भाजपा के पास मुस्कराने की कोई वजह बाकी नही है. मध्य प्रदेश, राजस्थान
और छत्तीसगढ़ उसकी पकड़ से दूर जा चुके हैं. बिहार में कुशवाहा एनड़ीए छोड़ चुके हैं और
पासवान आंखे दिखा रहे हैं जबकि बिहार सरकार की छवि पिछले कुछ महीनों में धूमिल हुई
है.
ऐसे में नीतीश का जादू चलने पर संशय है. जबकि महागठबंधन बिहार में कोई भी ढील छोड़ने के
मूड़ मे नहीं है. वही उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बनने की कवायद
जारी है और देर सवेर बन भी जाएगा और महागठबंधन के बाद नतीजे क्या होंगे यह दबी
जबान में अमित शाह भी स्वीकार करते हैं. जबकि 200 से ज्यादा सांसद इसी बेल्ट से आते हैं जिनमें
से 120 सिर्फ
युपी और बिहार से हैं. ऐसे में इस बेल्ट में भाजपा का कमजोर होना उसे
ना कवेल बहुमत बल्कि सत्ता से भी वंचित कर सकता है.
इसलिए इन नतीजो के बाद भाजपा को ना केवल इन तीन
राज्यों बल्कि पूरी बेल्ट में अपनी स्तिथि का ईमानदारी से आत्मविश्लेषण करना होगा. कि
आने वाले संभावित महागठबंधन से किस तरह निपटा जा सकता है. भाजपा को यह बात
भी समझनी चाहिए कि महज भाषण और जुमलेबाजी से चुनाव नही जीता जा सकता.
और नाहि लोकसभा तक इन तीन राज्यो में एंटी इंकबेंसी
का माहौल बनने वाला है
तेलंगाना में अमित शाह के मस्जिद और चर्च को
फ्री बिजली देने को मुद्दा बनाया तो वही योगी आदित्यनाथ ने शहरो के नाम बदलने के वादे
किए पर कोई फायदा नही हुआ. वही भाजपा जोड़ तोड़ के बाद भी मिजोरम में केवल
एक सीट ही हासिल कर पाई है हांलाकि वहां भाजपा कांग्रेस के हार की खुशी मना सकती
है पर उसकी खुद की तीन राज्यों की हार
मिजोरम में कांग्रेस की हार से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि मिजोरम की हार का
मिजोरम के बाहर कोई खास प्रभाव नही होगा पर इन तीन राज्यो के चुनाव पूरी हिन्दी
भाषी बेल्ट को प्रभावित करेंगे.
भाजपा
के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी अमित शाह और योगी आदित्यनाथ इस चुनाव में कोई खास
कमाल नही कर पाए हैं. मध्यप्रदेश में जिन सीटों पर इनकी रैली हुई वहां 80 फीसदी
सीटों पर भाजपा की हारी हुई. यानि
कही न कही भाजपा के स्टार प्रचारको की चमक भी मद्धम पड़ने लगी है ऐसे में
भाजपा के लिए 2019 का चुनाव आसान नही होने वाला है .अब
भाजपा इन हालात में क्या रणनीति अपनाती है यह देखना महत्वपूर्ण होगा. लेकिन फिलहाल तो कांग्रेस ने अमित शाह के
कांग्रेस मुक्त भारत अभिय़ान पर ब्रेक लगा दिया है.
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