कविता ,लेख जो निकले शोएब की क़लम से
प्रियतमा, उम्मीद है तुम खैरियत से होंगी। मैं आज भी तुम्हारे बैचेन और उदास हूं। और अपने बाते लम्हात याद कर रहा हूं। मैं यह तो नहीं ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें