Wikipedia

खोज नतीजे

यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 26 जनवरी 2017

भारतीय राजनीति में धर्म एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है धर्म के नाम पर बहुत सारे लोग चुनाव जीतते रहे हैं सरकारे भी बनाई हैं पर बहुत सारे लोग इसके विरोध में भी हैं ।

नए साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में  धर्म और भाषा को मुद्दा बनाकर वोट मांगने को अपराध करार दिया है|  सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की  याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फैसला सुनाया जिसमें उन्होंने सवाल उठाया था कि धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगना जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत कल प्रेक्टिस है या नहीं कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए बहुमत के आधार पर 43 के बहुमत से यह फैसला दिया ।  इस फैसले में कोर्ट ने माना कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में चुनाव के दौरान धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए |राजनीति में धर्म के प्रयोग से जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 124 का उल्लंघन होता है चुनाव प्रणाली को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी केवल उम्मीदवार की नहीं है बल्कि उसके एजेंट उसके मेनिफेस्टो और उसकी पार्टी के मेनफेस्टो और वोटर की भी है । यह फैसला स्वच्छ लोकतंत्र की राह में मील का पत्थर साबित हो सकता है लेकिन इसको बहुत से कारक प्रभावित करते हैं सबसे पहले इलेक्शन कमीशन और पुलिस प्रशासन का रवैया ।

ऐसा नहीं है कि अपने यहां धर्म राजनीति में धर्म के प्रयोग को रोकने के लिए कानून नहीं था बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 124 की समीक्षा करते हुए यह आदेश जारी किया है क्या अभी यह सख्ती से लागू होगा क्या पुलिस प्रशासन और निर्वाचन आयोग सख्ती करेगा ?दूसरी बात यह है कि यह कैसे साबित होगा कि उम्मीदवार ने  धर्म के नाम पर वोट मांगा है ?क्योंकि ज्यादातर केसों में  प्रत्यक्ष रुप से धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगा जाता कुछ दलों की राजनीति धर्म के दायरे में कभी आती ही नहीं है क्योंकि वे हिंदुत्व की राजनीति करते हैें  जोकि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार धर्म है ही नहीं बल्कि जीवन पद्धति है लिहाजा उसका प्रयोग अब भी जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत अपराध नहीं होगा यही वजह है कि धर्म के नाम पर सत्ता के शीर्ष तक पहुंच चुकी पार्टियों ने भी यह कहकर फैसले का स्वागत किया कि वह धर्म की राजनीति नहीं करते हैं । मुलायम सिंह और मायावती दलित और पिछड़े वोट बैंक की सियासत करते हैं वह अपनी जाति के शब्दों का प्रयोग ना करके दलित और पिछड़े शब्द का प्रयोग करेंग तोे  जनप्रतिनिधि अधिनियम की पकड़ में नहीं आएंगे । अगर कोई नेता मुसलमानों से वोट की अपील करने के लिए यह कह द कि फला पार्टी को रोकने के लिए अल्प संख्यक को एकजुट होना होगा यहां मतदाताओं से धर्म के नाम पर अपील की जा रही है लेकिन धर्म का प्रत्यक्ष प्रयोग नही हुआ है|

सबसे बड़ी बात यह है कि यह है कि अपने देश में सभी स्वयत संस्थाएं अप्रत्यक्ष रुप से सरकार से प्रभावित होती है । यह प्रभाव छोटे से पंचायत से लेकर बड़ी बेंच के फैसले में भी दिखाई पड़ता है ऐसे में राजनीति के बड़े खिलाड़ी जिन्होंने पूरे तालाब को गंदा किया है वह दोषी ठहराया जा सकेंगे या उन्हें सजा होगी यह अपने अाप में बड़ा सवाल है क्योंकि निर्वाचन आयोग की छवि यह है कि आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन करने पर उसके द्वारा कड़ी से कड़ी  कार्यवाही यही होती है कि वह सख्त कार्यवाही करने की चेतावनी देता है यही वजह है कि कोर्ट का फैसला आने के बाद पार्टियों ने इसका स्वागत किया और अगले दिन से ही नेता यूपी चुनाव के ध्रुवीकरण में जुट गए साक्षी महाराज बढ़ती आबादी के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहरा कर हिंदुओं को अल्पसंख्यक होने का  भय दिखा रहे हैं तो मायावती धर्म और जाति गिनाकर उम्मीदवारों का ऐलान कर रही है । वही राहुल गांधी कांग्रेस के चुनाव चिन्ह को धर्म गुरुओं का पंजा बता रहे हैं ।

यानि हर कोई ध्रुवीकरण का आपना तरीका अजमाने में लगा है ।

हक़ीक़त तो यही है कि धर्म को राजनीति से दूर कर पाना मुश्किल है यह उन देशो में ना हो सका जो  सेकुलरिज्म के ध्वजवाहक थे , लेकिन धर्म के नाम पर हो रही नकारात्मक राजनीति पर लगाम लगने ही चाहिए ।  धर्म के नाम पर फैली गंदगी को दूर करने के प्रयोग होने चाहिए । यह तभी होगा जब पुलिस प्रशासन चुनाव आयोग और न्यायालय तीनों ही सख्त हो उत्तर प्रदेश चुनाव इस फैसले के बाद का पहला चुनाव है अब देखना यह है कि आयोग और प्रशासन आचार सहिंता विशेषकर धर्म के प्रयोग का उल्लंघन करने वाले पर क्या कार्यवाही करेगा अगर कोई बड़ी कार्रवाई होती है तो वे मील का पत्थर साबित होगी |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंतिम पत्र

 प्रियतमा,          उम्मीद है तुम खैरियत से होंगी। मैं आज भी तुम्हारे बैचेन और उदास हूं। और अपने बाते लम्हात याद कर रहा हूं। मैं यह तो नहीं ...

tahlka