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रविवार, 26 फ़रवरी 2017

एक गधे की राजनीति


गधा अब जौजफ के लिए तस्करी करने वाला गधा बन कर रह गया था। उसने पढ़ने और समझने का काम बिल्कुल छोड़ दिया था अखबार तो ही बिल्कुल नही। न अदब से कोई सरोकार न सियासत से।
देश में काफी कुछ बदला गधे ने कोई ध्यान न दिया। क्योंकि पढने लिखने का गुण उसने अपने बाप गधे से लिया था। बाप ने नवाब सहाब की सोहबत पाकर पढ लिख लेने कै बाद जब भी उसे इस्तेमाल किया दुख ही उठाए थे। पूरी जिन्दगी में इंसानी ज़बान सीखने का एक ही फायदा मिला मरने से बच गए और जौजफ के यहां तस्करी की नौकरी मिल गई।
बेटे को पढ़ाई लिखाई इस वज़ह से करा दी कि आपातकाल में काम आएगी।
फिर जब देश में अपातकाल लागु हुआ तो बेटे का गर्म ख़ून जोश मारने लगा तो बाप ने समझाया कि बेटे यह अपातकाल इंसानो के लिए है गधो के लिए नही। अगर तु इंसानी जबान बोलेगा तो सरकार की नज़र में आजाएगा और मारा जाएगा। उसके बाद से गधे ने वालिद मरहुम की बात मान कर अदब और सियासत दोनो से तोबा कर ली।
यहां तक की गधो की लात से लम्बी बात फैकने वालो की सरकार आगई ।
एक दिन गधा सड़क पर झूमता जा रहा था कि उसकी अखबार पर नज़र पड़ गई, हैडिंग थी गधे पर भिडे पीएम और सीएम। 
नीचे सबहेडिंग थी गधे से प्रेरणा लेकर काम करता हुं:#मोदी।
पी एम चाहे तो गधे का विज्ञापन देदें।:#अखिलेश।
गधा सोचने लगा कि अब्बा मरहूम तो कहते थे कि वह नेहरु से मिले थे फिर मोदी नॆ किससे प्रेरणा ली? काफी सोच विचार के बाद उसने नतीजा निकाला कि अब गधे अब सियासत का हिस्सा बन चुके हैं। लिहाज़ा उसे भी सियासत का हिस्सा बनना चाहिए। और अगले दिन उसन् युपी की जानिब सफर की शुरूआत करदी जहां चुनाव हो रहे थे और गधो की बातें ज़ोरोशोर से चल रही थी(क्रमश)
#एक_गधे_की_राजनीति
#smjmi



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