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गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

तलाक से आज़ादी के उस पार छिपी गुलामी

तलाक को लेकर एक लम्बी  बहस चल रही है किसी को तलाक के नियमों का पता या नही लेकिन लगा हुआ है...जब भारत में इस्लाम नही आया था यहां तलाक का की तरिका नही था इस्लाम के आने के बाद भी हिन्दु धर्म में लम्बे समय तक तलाक का प्रावधान नही था औरतो पर जुल्म होता था उनकी हालत अच्छी नही थी पर शादी सात जन्मों का बंधन थी....आज ऐसा नही है शादी आज एक जन्म का बंधन भी नही बचा.....
लेकिन भारत एक बार फिर उस दौर की तरफ बढ़ता जा रहा है जहां शादी सात जन्मो का बंधन थी पति मारे पीटे जुल्म-अत्याचार करे पर परमेश्वर है शायद वह दौर ख़ामोशी से वापस आ रहा है...आज कल तलाक पर चल रही बहस को देख कर यही लगता है....कोई कह रहा है कि इस कानून के दायरे में सभी तलाक आने चाहिए थे नही तो वह दुसरे तरिके से तलाक दे देगे गोया वोह तलाक देने पर ही पाबंदी लगवाना चाहते हो.....वह लैंगिक समानता और न्याय की बात करते है पर  जब हम मांग करते हैं कि आप मुस्लिम महिलाऔ को आरक्षण दो तो वह दौड़ जाते हैं.....
अगर उनका उद्देश्य महिला सशक्तिकरण का होता तो वह आरक्षण देते अगर इनका इरादा महिलाऔ को समानता देने का होता तो वह शिक्षा में आरक्षण देते अगर उनका इरादा महिलाऔ को न्याय दिलाने का होता तो उन महिलाओ के पक्ष में कानून बनाता जिन्हे बिना तलाक दिये छोड़ दिया गया अब वह ना तो दूसरी शादी भी नही कर सकती और ना ही उन्हे कोई गुजारा भत्ता ही मिल रहा है..........लेकिन की कानून नही लाये ना लाने वाले क्योंकि सारी कवायद सिर्फ और सिर्फ तलाक के खिलाफ माहौल बनाने की है जिसमें वह कामयाब भी हो रहे हैं....
जो तलाक कभी नारी के उत्पीड़न से आज़ादी का प्रतीक बनी थी आज वह सबसे बड़ी खलनायक बन गई है
शायद वह इस तलाक से आज़ादी के उस पार छिपी सात जन्मों के बंधन वाली गुलामी को देख पाने में असमर्थ हैं










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