Wikipedia

खोज नतीजे

यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

याद

अकसर चलते चलते
 मैं खो जाता हुं
कुछ पुराने निशानों में
जो बसे हैं अपनी यादों में
खुदा जाने यादें हैं सच्ची
या देखी थी केवल ख्वाबों में
कभी लगता है गुज़रा हूं 
इस खामोश जंगल से
कभी लगता है आया हूं 
इन कब्रगाहो में
कभी लगता है हर अजनबी
जाना पहचाना सा

यह यादें है गुज़री
जिंदगानी की
या फिर यह वो ख्वाब हैं ठहरे
जो गफलत दिखलाए थे रातों में
ऩा जाने कौन अकसर
रातों को बुलाता है

इस दुनिया से दूर
कहकशांओ  में
एक दुनिया नई सी है
जहां बना है एक स्वप्न महल
जहां से यह सदा आती है
जो मुझको बुलाती है
वहा कौन रहता है
जो हमको बुलाता है
वह कौन है!
और क्या उससे नाता है
शायद उससे प्यार हुआ था!
क्षितिज के उस पार
मिलने का इकरार हुआ था

उसको पा जाने को
क्षितिज की जानिब चलता हूं 
फिर भी उतनी दूर खड़ा हूं
जितना आगे बढ़ती हुं

दूर क्षितिज पर शायद तू है
 या क्षितिज है स्मृतियां तेरी
 सुर्य उदय हो या अस्त,
 उसमें दिखती है विस्मृतिया तेरी
 क्षितिज के इस पार खड़ा मैं
 देख रहा हुं नित नेम से
प्रिय तुम को बड़े प्रेम से
 हां क्षितिज के इस पार खड़ा मैं
प्रतिक्षारत लिए प्रेम के
आओ प्रियतम छोड़ क्षितिज को
 आ जाओ तुम इस पार
वरना  यह बतलादो मुझको
कहां मिलेगा  मेरा प्यार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंतिम पत्र

 प्रियतमा,          उम्मीद है तुम खैरियत से होंगी। मैं आज भी तुम्हारे बैचेन और उदास हूं। और अपने बाते लम्हात याद कर रहा हूं। मैं यह तो नहीं ...

tahlka